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बिहार में चुनावी हिंसा: एक बढ़ती समस्या

 


बिहार में चुनाव का मौसम आता है तो राजनीतिक गतिविधियों में तेजी आ जाती है। लेकिन इस बार का चुनाव कुछ अलग है। इस बार चुनावी मैदान में अपराधियों की मौजूदगी ने मतदाताओं को चिंतित कर दिया है। बिहार में बढ़ते राजनीतिक अपराधों की घटनाएं न केवल मतदाताओं को डरा रही हैं बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी कमजोर कर रही हैं।

Bihar के मोकामा में हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान हुई हिंसा ने राजनीतिक तनाव बढ़ा दिया है। इस घटना में जन सुराज पार्टी के समर्थक एवं राजद के पूर्व नेता दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हमले के बाद क्षेत्र में तनाव फैल गया और समर्थकों ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया।

- हिंसा की घटना: मोकामा में चुनाव प्रचार के दौरान दो गुटों के बीच झड़प हो गई जिसमें दुलारचंद यादव की मौत हो गई।

- आरोप-प्रत्यारोप: जन सुराज पार्टी ने जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह पर हमले का आरोप लगाया जबकि Anant Singh ने इन आरोपों से इनकार किया और सूरजभान सिंह पर साजिश रचने का आरोप लगाया।

- पुलिस कार्रवाई: पुलिस ने मामले में अनंत सिंह सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया और कई अधिकारियों को निलंबित किया।

- चुनाव आयोग की कार्रवाई: चुनाव आयोग ने भी मामले का संज्ञान लिया और रिपोर्ट मांगी। आयोग ने कहा कि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।


राजनीतिक प्रतिक्रिया

- जन सुराज पार्टी: पार्टी नेताओं ने इस घटना को लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चुनौती बताया और दोषियों की गिरफ्तारी की मांग की।

- विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया: विपक्षी दलों ने सरकार पर कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठाए।

मोकामा बिहार की सबसे विवादित सीटों में से एक है, जहां बाहुबली नेताओं का प्रभाव रहा है। इस बार के चुनाव में भी यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है जिसमें अनंत सिंह, सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी और जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी प्रमुख हैं।

बिहार में अपराध और राजनीति का गहरा संबंध है। कई बाहुबली नेता अपने प्रभाव का उपयोग कर चुनाव जीतने की कोशिश करते हैं। इससे मतदाताओं पर दबाव बनाया जाता है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया प्रभावित होती है। पिछले कुछ वर्षों में बिहार में चुनावी प्रक्रिया के दौरान हिंसा और अपराध की घटनाएं बढ़ी हैं।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में पहले चरण के चुनाव में 32% उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 27% उम्मीदवारों पर गंभीर अपराध जैसे कि हत्या, बलात्कार और हमले के मामले दर्ज हैं। यह आंकड़े बिहार में बढ़ते राजनीतिक अपराधों की गंभीरता को दर्शाते हैं।

राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों को टिकट देने की प्रवृत्ति भी इस समस्या को बढ़ावा दे रही है। कई दलों ने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिनके खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं। इससे मतदाताओं में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने से डरने लगे हैं।

बिहार में बढ़ते राजनीतिक अपराधों पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा। चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और नागरिक सभी को मिलकर इस दिशा में प्रयास करने होंगे ताकि बिहार में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें।


Election Commission ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए कड़ी कार्रवाई करने का फैसला किया है। आयोग ने सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को चुनाव के दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा आयोग ने राजनीतिक दलों से भी आग्रह किया है कि वे अपराधियों को टिकट न दें।

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